Hanuman Putra Ki Katha - हनुमान पुत्र
Hanuman Putra Ki Katha - हनुमान पुत्र
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Read Here - भक्ति कथायें ।।
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जब हनुमान जी ने लंका दहन किया तो वहां से उठने वाली आग की लपटों से हनुमान जी को पसीना आने लगा।
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अपने शरीर से अग्नि के ताप को शांत करने और पूंछ में लगी आग को बुझाने के लिए हनुमान जी समुद्र में प्रवेश कर गए
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जैसे ही उन्होंने समुद्र में प्रवेश किया। उनके शरीर से टपकी पसीने की बूंद को एक मछली निगल गई। जिससे मछली ने गर्भ धारण किया।
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कुछ समय पश्चात पाताल के राक्षस राजा अहिरावण के सिपाही समुद्र तट पर मछलियां पकड़ने गए तो उस मछली को भी पकड़ लाए जो गर्भवती थी।
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जब उस मछली का पेट काटा गया तो उसमें से एक जीता जागता मनुष्य का बच्चा निकला जो दिखने में बंदर जैसा लगता था।
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सैनिक उस बंदर रूपी मनुष्य को देखकर बहुत हैरान हुए। उसके पराक्रम को देखते हुए उसे पाताल का द्वारपाल बना दिया गया।
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श्री राम और रावण का जब युद्ध चल रहा था तो रावण के कहने पर उसका भाई अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण को छल से उठाकर अपनी नगरी पाताल में ले आया।
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हनुमान जी ने जब देखा की श्री राम और लक्ष्मण अपने शिविर में नहीं हैं तो उनको खोजते हुए वह पाताल पहुंच गए।
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पाताल के मुख्य द्वार पर पंहुच कर वो प्रवेश करने ही वाले थे की उनका सामना बंदर रूपी मनुष्य से हुआ।
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हनुमान जी ने उसे पूछा, तुम कौन हो ?
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तो उसने अपना परिचय देते हुए कहा कि, वह पवनपुत्र हनुमान का बेटा मकरध्वज है।
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उसका ऐसा परिचय पाकर हनुमान जी बहुत हैरान हुए।
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हनुमान जी बोले, मैं ही पवनपुत्र हनुमान हूं। किंतु तुम मेरे पुत्र हो ही नहीं सकते क्योंकि मैं तो बालब्रह्मचारी हूं।
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मकरध्वज ने हनुमान जी को अपने पैदा होने की कहानी सुनाई।
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कहानी सुन लेने के पश्चात हनुमान जी ने माना कि मकरध्वज उनका ही पुत्र है और अपने पुत्र को गले से लगा लिया।
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मकरध्वज ने हनुमान जी से पाताल लोक आने का कारण पूछा।
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हनुमान जी ने मकरध्वज को बताया कि, उनके स्वामी श्री राम और लक्ष्मण को अहिरावण छल से उठा लाया है और उन्हें कैद करके रखा है।
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मैं उन्हें मुक्त करवाने आया हूं।
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मकरध्वज भी अपने पिता की तरह स्वामी भक्त था। उसने अपने पिता से कहा कि,
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जैसे आप अपने स्वामी की सेवा पूरे सेवा भाव से कर रहे हैं वैसे ही मैं भी अपने स्वामी की सेवा में हूं,
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इसलिए आपको नगर के अंदर नहीं आने दूंगा।
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हनुमान जी अपने पुत्र को बहुत प्रकार से समझाने का प्रयत्न किया मगर वह नहीं माना।
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तो हनुमान जी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा पिता और पुत्र में घमासान युद्घ आरंभ हो गया।
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जब मकरध्वज हनुमान जी से हार गया तो उन्होंने उसे अपनी पूंछ में बांध लिया और नगर के भीतर चले गए।
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अहिरावण का अंत करके हनुमान जी ने श्री राम और लक्ष्मण को कैद से मुक्त करवाया और अपने बेटे मकरध्वज को भगवान राम का आशीर्वाद दिलवाया।
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आशीर्वाद रूप में श्री राम ने मकरध्वज को पाताल का राजा बना दिया।
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