Jai Ambe Gauri Maiya Jai Shyama Gauri Aarti With Lyrics By Narendra Chanchal- जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी Mp3 Download
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Bhajan
Jai Ambe Gauri Maiya Jai Shyama Gauri
Mata ke Bhajan
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Track Name - Jai Ambe Gauri Maiya Jai Shyama Gauri
Website - HariDasi
Tags - Mata ke Bhajan
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Read Here - भक्ति कथायें ।।
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-Lyrics-
Jai Ambe Gauri Maiya Jai Shyama Gauri
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी
। जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
॥ तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
। मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
॥ उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
। कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
॥ रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
। केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
॥ सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
। कानन कुण्डल शोभित, नासा गज मोती ।
॥ कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
। शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
॥ धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
। चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
॥ मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
। ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
॥ आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
। चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
॥ बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
। तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
॥ भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
। भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
॥ मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
। कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
॥ श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
। श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
॥ कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
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Jai Ambe Gauri Maiya Jai Shyama Gauri
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी
। जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
॥ तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
। मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
॥ उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
। कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
॥ रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
। केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
॥ सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
। कानन कुण्डल शोभित, नासा गज मोती ।
॥ कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
। शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
॥ धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
। चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
॥ मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
। ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
॥ आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
। चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
॥ बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
। तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
॥ भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
। भुजा चार अति शोभित, खडग खप्पर धारी ।
॥ मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
। कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।
॥ श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
। श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
॥ कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
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